Kochi Tuskers IPL Case: बॉम्बे हाईकोर्ट से BCCI को लगा तगड़ा झटका, बंद हो चुकी कोच्चि टस्कर्स को मोटी रकम चुकाने का दिया आदेश
बीसीसीआई (Photo Credit: X Formerly Twitter)

Kochi Tuskers IPL Case: मुंबई की बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीसीसीआई (BCCI) को एक बड़ा झटका देते हुए इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) की अब बंद हो चुकी फ्रेंचाइज़ी कोच्चि टस्कर्स केरल (Kochi Tuskers Kerala) के पक्ष में दिए गए कुल ₹538 करोड़ से अधिक के मध्यस्थता फैसलों को बरकरार रखा है. कोर्ट ने बीसीसीआई की ओर से दायर की गई आपत्ति को खारिज करते हुए इस आदेश को सही ठहराया. जस्टिस आर.आई. चागला ने अपने फैसले में कहा कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत अदालत की शक्तियां सीमित हैं और यह किसी अपीलीय अदालत की तरह मध्यस्थ के निष्कर्षों पर पुनर्विचार नहीं कर सकती. अब BCCI के पास इस फैसले को चुनौती देने के लिए छह हफ्तों का समय है. यदि बोर्ड ऊपरी अदालत में अपील नहीं करता, तो उन्हें ₹538 करोड़ से अधिक की रकम केसीपीएल और आरएसडब्ल्यू को चुकानी पड़ेगी. स्पोर्ट्स हर्निया की सर्जरी के लिए लंदन पहुंचे सूर्यकुमार यादव, जानें कब तक रह सकते हैं टीम से बाहर

क्या है पूरा मामला?

कोच्चि टस्कर्स फ्रेंचाइज़ी को बीसीसीआई ने सितंबर 2011 में अनुबंध समाप्त कर आईपीएल से बाहर कर दिया था. बोर्ड ने इसका कारण यह बताया कि टीम के स्वामित्व विवाद के चलते कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (KCPL) ने नियमानुसार 10% बैंक गारंटी समय पर जमा नहीं की. यह टीम 2011 के आईपीएल सीज़न में रेंडेज़वस स्पोर्ट्स वर्ल्ड (RSW) के नेतृत्व में खेली थी. बाद में टीम की ओर से दलील दी गई कि बैंक गारंटी में देरी की वजह स्टेडियम की उपलब्धता, शेयरधारकों की स्वीकृति और मैचों की संख्या में कटौती जैसे अनसुलझे मसले थे. बावजूद इसके, बीसीसीआई ने केसीपीएल से भुगतान स्वीकार किए और अंतिम समय तक संवाद बनाए रखा.

मध्यस्थता में क्या हुआ?

2012 में KCPL और RSW ने BCCI के खिलाफ मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू की. 2015 में ट्रिब्यूनल ने KCPL के पक्ष में ₹384 करोड़ और RSW को ₹153 करोड़ का मुआवज़ा दिलाया. यह रकम आईपीएल से निकाले जाने से हुए मुनाफे के नुकसान और बैंक गारंटी की अनुचित जब्ती से संबंधित थी. इसके अलावा ब्याज और कानूनी खर्च भी शामिल था. बीसीसीआई ने इस निर्णय को चुनौती दी और दावा किया कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने अपनी सीमाओं से परे जाकर फैसला सुनाया और कानूनी सिद्धांतों की गलत व्याख्या की. बोर्ड का तर्क था कि बैंक गारंटी न देना अनुबंध का मूल उल्लंघन था, जिससे टीम को हटाना उचित था.

लेकिन KCPL और RSW ने पलटवार करते हुए कहा कि BCCI ने व्यवहारिक रूप से गारंटी की डेडलाइन को खुद ही नज़रअंदाज़ कर दिया था और टीम को बाहर करना अनुचित और अनुपातहीन था. उन्होंने कहा कि मध्यस्थ का फैसला उपलब्ध साक्ष्यों के गहन मूल्यांकन पर आधारित था.

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने BCCI की सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा: “बीसीसीआई द्वारा अनुबंध समाप्त करना एक नाजायज़ और असंगत क़दम था. मध्यस्थ का निष्कर्ष कि बीसीसीआई की कार्रवाई अनुबंध का उल्लंघन है, उस पर अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती.” जस्टिस चागला ने यह भी कहा कि केवल इस आधार पर कि कोई दूसरा दृष्टिकोण हो सकता है, मध्यस्थ के निर्णय में हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं बनता. कोर्ट ने माना कि BCCI ने वास्तव में Clause 8.4 के तहत 2012 सीज़न के लिए बैंक गारंटी की अनिवार्यता को व्यवहार में शिथिल किया था. इसलिए इस आधार पर टीम को बाहर करने का कोई ठोस कारण नहीं था.