
इलेक्ट्रिक गाड़ियां, लड़ाकू विमान और डिजिटल कैमरे, इन सब चीजों में एक चीज समान है-दुर्लभ तत्व यानी रेयर अर्थ एलिमेंट्स. इस समय दुनिया के लगभग 70 फीसदी रेयर अर्थ एलिमेंट्स केवल चीन में खोद कर निकाले जाते हैंदुर्लभ तत्वों की मांग तो हर जगह है, लेकिन यह केवल कुछ ही देशों में पाए जाते हैं. दुर्लभ तत्व या रेयर अर्थ एलिमेंट्स 17 रासायनिक तत्वों का एक समूह है. जो आधुनिक तकनीक का एक छोटा लेकिन बहुत जरूरी हिस्सा है. स्मार्टफोन से लेकर पतली स्क्रीन वाले टीवी, डिजिटल कैमरे और एलईडी लाइट भी इन पर निर्भर करते हैं. लेकिन इसका सबसे अहम इस्तेमाल स्थायी चुंबक बनाने में होता है.
यह चुंबक कई दशकों तक अपनी चुंबकीय शक्ति बनाए रख सकते हैं क्योंकि यह काफी शक्तिशाली होते हैं और इन्हें कितना भी छोटा या हल्का बनाया जा सकता है. इसलिए यह इलेक्ट्रिक गाड़ियों से लेकर विंड टरबाइनों के लिए बहुत जरूरी होते हैं.
क्या है अमेरिका और यूक्रेन के बीच हुआ खनिज समझौता
रेयर अर्थ एलिमेंट्स का इस्तेमाल केवल यहीं तक सीमित नहीं है. रक्षा तकनीक में जैसे कि लड़ाकू विमान और पनडुब्बियों के लिए भी यह बहुत जरूरी होते हैं. वाणिज्य और रक्षा क्षेत्र में इनकी रणनीतिक अहमियत के कारण ही यह इतने कीमती होते हैं. उदाहरण के लिए, नियोडिमियम और प्रासोडिमियम, जो स्थायी चुंबक बनाने के लिए सबसे जरूरी दुर्लभ तत्व हैं. इसकी कीमत करीब लगभग 55 यूरो प्रति किलो है. जबकि एक किलो टर्बियम की कीमत लगभग 850 यूरो तक चली जाती है.
कहां से मिलते हैं रेयर अर्थ एलिमेंट्स?
कुल 17 तरह के तत्वों को "रेयर अर्थ एलिमेंट्स” कहा जाता है लेकिन यह नाम थोड़ा भ्रमित करने वाला है. असल में, यह तत्व धरती पर काफी आम हैं और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पूरी दुनिया में पाए जाते हैं. असल चुनौती है, ऐसे इलाकों को ढूंढना जहां यह अधिक मात्रा में हो और खुदाई कर उन्हें निकालना आर्थिक रूप से फायदेमंद हो. फिलहाल, अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया के लगभग 70 फीसदी रेयर अर्थ एलिमेंट्स चीन में खनन किए जाते हैं. जिसमें से अधिकतर चीन के उत्तर में स्थित बायन ओबी नाम की खान से आते हैं.
चीन ने रोकी रेयर अर्थ एलिमेंट की सप्लाई, अमेरिका पर सबसे गहरा असर
यह खान दुनिया के किसी भी दूसरे बड़े भंडार से कई गुना बड़ी है. बायन ओबी खान में चुम्बक बनाने में इस्तेमाल होने वाले सभी रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं.
खनन के बाद, इन तत्वों को अलग करने और उपयोगी रूप में बदलने के लिए इन्हे एक खास प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसे रिफाइनिंग कहा जाता है और यह काम भी मुख्य रूप से चीन में ही होता है. चीन न सिर्फ दुनिया के ज्यादातर रेयर अर्थ धातुओं की आपूर्ति करता है, बल्कि उनसे बने चुम्बक का भी सबसे बड़ा उत्पादक है.
यह आधिपत्य और भी बढ़ जाता है, जब बात रेयर अर्थ एलिमेंट्स की आती है. आमतौर पर इन्हें तीन वर्गों में बांटा गया है, लाइट (हल्के), मीडियम (मध्यम), और हेवी (भारी) तत्व. परमाणु भार के आधार पर इनका वर्गीकरण किया जाता है.
हल्के तत्व आमतौर पर कम कीमती होते हैं और उन्हें खोजना भी थोड़ा आसान होता है. लेकिन इस समूह में शामिल नियोडिमियम और प्रासोडिमियम जैसे तत्व, जो मैग्नेट बनाने के लिए जरूरी होते हैं, उन्हें खोजना थोड़ा मुश्किल होता है. यूरोपीय संघ के 80 से 100 फीसदी हल्के तत्वों की आपूर्ति चीन ही करता है.
भारी तत्व, जो बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं और जिन्हें अलग करने की प्रक्रिया भी काफी जटिल होती है. उनके लिए यूरोप पूर्ण रूप से चीन पर निर्भर करता है.
अगर चीन आपूर्ति करना बंद कर दे तो क्या होगा?
चीन के रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर आधिपत्य को लेकर कई पश्चिमी देशों में चिंता है कि कहीं चीन भविष्य में इसकी आपूर्ति रोक न दे. इसी वजह से हाल के वर्षों में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इन जरूरी धातुओं के लिए अपनी खुद की आपूर्ति तैयार करने की दिशा में कदम उठाए हैं.
2024 में, यूरोपीय संघ ने क्रिटिकल रॉ मटेरियल्स एक्ट पर हस्ताक्षर किए. इस कानून में यह तय किया गया है कि 2030 तक यूरोपीय संघ को कितनी मात्रा में खुद से इन जरूरी धातुओं का उत्पादन करना चाहिए. हालांकि यह समय-बाध्य नहीं हैं. लेकिन यह कानून यूरोपीय संघ के कुछ प्रोजेक्ट्स को "रणनीतिक परियोजनाएं” घोषित करने की अनुमति देता है, चाहे वो यूरोपीय संघ के भीतर हों या नॉर्वे जैसे करीबी साझेदार देशों के साथ हो. इसका मकसद है कि निवेश को बढ़ावा मिले, लोगों की स्वीकृति हासिल हो और अनुमतियों की प्रक्रिया को तेज किया जा सके.
वहीं, अमेरिका का रक्षा मंत्रालय 2020 से घरेलू कंपनियों में भारी निवेश कर रहा है. उसका लक्ष्य है कि 2027 तक देश में ही ‘माइन-टू-मैग्नेट' सप्लाई चेन तैयार कर ली जाए यानी खनन से लेकर चुंबक बनाने तक की पूरी प्रक्रिया अमेरिका के अंदर ही हो.
अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ने अब तक कम उपयोग किए गए स्रोतों में भी रुचि दिखाई है. यूक्रेन और ग्रीनलैंड में अमेरिका की खास रुचि है, खासकर पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में यह और बढ़ी है. इन दोनों स्थानों में रेयर अर्थ एलिमेंट्स के बड़े भंडार होने की संभावना है, लेकिन वहां जाना और खनन करना फिलहाल मुश्किल है. इस कारण पश्चिमी देशों की इन धातुओं तक पहुंच अब भी अनिश्चित बनी हुई है.
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रेयर अर्थ एलिमेंट्स का इस्तेमाल केवल यहीं तक सीमित नहीं है. रक्षा तकनीक में जैसे कि लड़ाकू विमान और पनडुब्बियों के लिए भी यह बहुत जरूरी होते हैं. वाणिज्य और रक्षा क्षेत्र में इनकी रणनीतिक अहमियत के कारण ही यह इतने कीमती होते हैं. उदाहरण के लिए, नियोडिमियम और प्रासोडिमियम, जो स्थायी चुंबक बनाने के लिए सबसे जरूरी दुर्लभ तत्व हैं. इसकी कीमत करीब लगभग 55 यूरो प्रति किलो है. जबकि एक किलो टर्बियम की कीमत लगभग 850 यूरो तक चली जाती है.
कहां से मिलते हैं रेयर अर्थ एलिमेंट्स?
कुल 17 तरह के तत्वों को "रेयर अर्थ एलिमेंट्स” कहा जाता है लेकिन यह नाम थोड़ा भ्रमित करने वाला है. असल में, यह तत्व धरती पर काफी आम हैं और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पूरी दुनिया में पाए जाते हैं. असल चुनौती है, ऐसे इलाकों को ढूंढना जहां यह अधिक मात्रा में हो और खुदाई कर उन्हें निकालना आर्थिक रूप से फायदेमंद हो. फिलहाल, अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण के अनुसार, दुनिया के लगभग 70 फीसदी रेयर अर्थ एलिमेंट्स चीन में खनन किए जाते हैं. जिसमें से अधिकतर चीन के उत्तर में स्थित बायन ओबी नाम की खान से आते हैं.
चीन ने रोकी रेयर अर्थ एलिमेंट की सप्लाई, अमेरिका पर सबसे गहरा असर
यह खान दुनिया के किसी भी दूसरे बड़े भंडार से कई गुना बड़ी है. बायन ओबी खान में चुम्बक बनाने में इस्तेमाल होने वाले सभी रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं.
खनन के बाद, इन तत्वों को अलग करने और उपयोगी रूप में बदलने के लिए इन्हे एक खास प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसे रिफाइनिंग कहा जाता है और यह काम भी मुख्य रूप से चीन में ही होता है. चीन न सिर्फ दुनिया के ज्यादातर रेयर अर्थ धातुओं की आपूर्ति करता है, बल्कि उनसे बने चुम्बक का भी सबसे बड़ा उत्पादक है.
यह आधिपत्य और भी बढ़ जाता है, जब बात रेयर अर्थ एलिमेंट्स की आती है. आमतौर पर इन्हें तीन वर्गों में बांटा गया है, लाइट (हल्के), मीडियम (मध्यम), और हेवी (भारी) तत्व. परमाणु भार के आधार पर इनका वर्गीकरण किया जाता है.
हल्के तत्व आमतौर पर कम कीमती होते हैं और उन्हें खोजना भी थोड़ा आसान होता है. लेकिन इस समूह में शामिल नियोडिमियम और प्रासोडिमियम जैसे तत्व, जो मैग्नेट बनाने के लिए जरूरी होते हैं, उन्हें खोजना थोड़ा मुश्किल होता है. यूरोपीय संघ के 80 से 100 फीसदी हल्के तत्वों की आपूर्ति चीन ही करता है.
भारी तत्व, जो बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं और जिन्हें अलग करने की प्रक्रिया भी काफी जटिल होती है. उनके लिए यूरोप पूर्ण रूप से चीन पर निर्भर करता है.
अगर चीन आपूर्ति करना बंद कर दे तो क्या होगा?
चीन के रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर आधिपत्य को लेकर कई पश्चिमी देशों में चिंता है कि कहीं चीन भविष्य में इसकी आपूर्ति रोक न दे. इसी वजह से हाल के वर्षों में अमेरिका और यूरोपीय संघ ने इन जरूरी धातुओं के लिए अपनी खुद की आपूर्ति तैयार करने की दिशा में कदम उठाए हैं.
2024 में, यूरोपीय संघ ने क्रिटिकल रॉ मटेरियल्स एक्ट पर हस्ताक्षर किए. इस कानून में यह तय किया गया है कि 2030 तक यूरोपीय संघ को कितनी मात्रा में खुद से इन जरूरी धातुओं का उत्पादन करना चाहिए. हालांकि यह समय-बाध्य नहीं हैं. लेकिन यह कानून यूरोपीय संघ के कुछ प्रोजेक्ट्स को "रणनीतिक परियोजनाएं” घोषित करने की अनुमति देता है, चाहे वो यूरोपीय संघ के भीतर हों या नॉर्वे जैसे करीबी साझेदार देशों के साथ हो. इसका मकसद है कि निवेश को बढ़ावा मिले, लोगों की स्वीकृति हासिल हो और अनुमतियों की प्रक्रिया को तेज किया जा सके.
वहीं, अमेरिका का रक्षा मंत्रालय 2020 से घरेलू कंपनियों में भारी निवेश कर रहा है. उसका लक्ष्य है कि 2027 तक देश में ही ‘माइन-टू-मैग्नेट' सप्लाई चेन तैयार कर ली जाए यानी खनन से लेकर चुंबक बनाने तक की पूरी प्रक्रिया अमेरिका के अंदर ही हो.
अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ने अब तक कम उपयोग किए गए स्रोतों में भी रुचि दिखाई है. यूक्रेन और ग्रीनलैंड में अमेरिका की खास रुचि है, खासकर पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में यह और बढ़ी है. इन दोनों स्थानों में रेयर अर्थ एलिमेंट्स के बड़े भंडार होने की संभावना है, लेकिन वहां जाना और खनन करना फिलहाल मुश्किल है. इस कारण पश्चिमी देशों की इन धातुओं तक पहुंच अब भी अनिश्चित बनी हुई है.