Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य 'स्नेह' या 'प्यार' जैसे शब्दों से 'हेट भाव' क्यो रखते हैं? जानें उनके इस भाव के पीछे का नजरिया!

Chanakya Niti: लेखक, कवि या विचारकों की नजर में स्नेह, प्यार और ममता आदि के सकारात्मक भाव होते हैं और उसी सोच के साथ वर्णन करते हैं, लेकिन आचार्य चाणक्य का दृष्टिकोण थोड़ा भिन्न है, जैसा कि उन्होंने सैकड़ों साल पुरानी लिखी चाणक्य नीति के 13वें अध्याय में उल्लेख किया है. आइये जानते हैं, चाणक्य की सोच इतनी नकारात्मक क्यों है स्नेह एवं प्यार आदि के लिए? यह भी पढ़ें: Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य क्यों चेतावनी देते हैं कि इन पांच लोगों के बीच पड़ने से बचना चाहिए! जानें कौन हैं वे पांच लोग?

यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।

स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्त्वा वसेत् सुखम्।।

इस श्लोक का अक्षरश आशय है,

यस्य स्नेहो भयं तस्य: जिसका स्नेह है, उसे भय भी है.

स्नेहो दुःखस्य भाजनम्: स्नेह दुःख का पात्र है, यानि दुःख का कारण है.

स्नेहमूलानि दुःखानि: दुःख का मूल स्नेह में है.

तानि त्यक्त्वा वसेत् सुखम्: स्नेह के उन बंधनों को त्यागकर सुख से रहना चाहिए.

उपरोक्त श्लोक के मूल आशय का वर्णन करते हुए चाणक्य ने स्नेह को समस्त दुःखों की जड़ बताया है. अपने इस विचार को वह उपर्युक्त श्लोक द्वारा स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मनुष्य जिसके साथ भी स्नेह के बंधन में बंध जाता है, उसका जीवन उसी के अनुरूप चलने लगता है.

जब व्यक्ति दुःखी होता है तो उसे देखकर स्नेह-बंधन में बंधा मनुष्य भी दुःखी हो जाता है. इसी प्रकार वह उसके सुखों में ही अपना सुख तथा उसके भय में अपना भय देखता है. यही स्नेह जीवात्मा को बार-बार जीवन-मृत्यु के चक्र की ओर धकेलता है. इसके विपरीत, स्नेह रहित मनुष्य के लिए सभी एक समान होते हैं. उसे न तो किसी के दुःखी होने से दुःख होता है और न किसी के सुखी होने से सुख. वह हृदय में सभी के लिए एक ही भाव रखता है. इसलिए विद्वान् मनुष्य को अत्यधिक स्नेह का परित्याग करके सुखमय जीवन व्यतीत करना चाहिए.