
आचार्य चाणक्य की नीतियों के महत्व को इसी से समझा जा सकता है कि सैकड़ों साल बाद आज भी उतनी ही सामयिक लगती हैं, जितना लिखते समय रही होंगी. आचार्य की नीतियां आज भी जीवन का मार्गदर्शन करती हैं. आचार्य ने अपनी नीतियों में कर्म, ज्ञान और व्यवहारिकता को प्रमुखता से महत्व दिया है. चाणक्य का मानना था कि कोई भी व्यक्ति जन्म से महान या सफल नहीं होता, बल्कि उसकी योग्यताएं और सफलता उसके निरंतर प्रयासों और कर्मों का परिणाम होती हैं. आइये जानते हैं इस श्लोक के माध्यम से आचार्य ने बताने की कोशिश की है कि किन दो लोगों के बीच से गुजरने से बचना चाहिए.
‘विप्रयोर्विप्रवह्नश्च दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च.’
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम से बताना चाहते हैं कि राह में अपनाई जानेवाली वर्जनाओं के प्रति क्यों ध्यान रखना चाहिए. इस श्लोक में चाणक्य बताते हैं कि कभी भी दो ब्राह्मणों के बीच से, ब्राह्मण और आग के बीच से, मालिक और नौकर के बीच से, पति और पत्नी के बीच से तथा हल और बैलों के बीच से होकर गुजरना नहीं चाहिए, क्योंकि माना जाता है कि जहां दो व्यक्ति खड़े हों, अथवा बैठे हुए कुछ बात कर रहे हैं, उनके बीच से गुजरने के बजाय एक किनारे से निकल जाना चाहिए. यह भी पढ़ें : Apara Ekadashi 2025 Wishes: अपरा एकादशी के इन भक्तिमय हिंदी WhatsApp Messages, Quotes, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं
यदि दो ब्राह्मण खड़े हैं तो उनके बीच में से न गुजरने के भाव का यह आशय है कि हो सकता है कि वे किसी शास्त्र-चर्चा में मशगूल हों. इसी तरह धधकती आग के बीच से भी गुजरने से बचना चाहिए. इसी तरह पति पत्नी, स्वामी और सेवक जब कोई बात कर रहे हों तो ना उनके पास जाना चाहिए, और ना ही किसी तरह का हस्तक्षेप करना चाहिए. इसी तरह हल और बैल के बीच से गुजरने की कोशिश में आप खतरनाक रूप से चोटिल हो सकते हैं. इस तरह यह मान लेना चाहिए व्यक्ति को गुजरते समय आसपास का माहौल देखकर गुजरना चाहिए.