
अगले जलवायु सम्मेलन सम्मेलन से पहले विकासशील देश जलवायु के लिए धन को लेकर विकसित देशों की प्रतिबद्धता कायम करने की कोशिश कर रहे हैं. भारत इस कोशिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.नवंबर में ब्राजील में जलवायु सम्मेलन (सीओपी-30)का आयोजन होना है, जहां जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में देशों के वित्तीय योगदान को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा होनी है. सम्मेलन से पहले, इन दिनों जर्मनी के बॉन में संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) की सहायक संस्थाओं (एसबी 62) का 62वां सत्र चल रहा है.
इस सत्र के नतीजे ही सीओपी-30 के एजेंडा की रूपरेखा तय करते हैं. बॉन में जिन विषयों पर चर्चा चल रही है, उनमें क्लाइमेट फाइनैंस एक प्रमुख विषय है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, बॉन में भारत के नेतृत्व में विकासशील देशों ने एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण जीत हासिल की है.
विकसित देशों की जवाबदेही
दरअसल क्लाइमेट फाइनैंस को लेकर विकसित और विकासशील देशों के बीच लगातार संघर्ष चल रहा है. पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने की कोशिशों के लिए पैसे देने भी है (अनुच्छेद 9.1) और 'मोबिलाइज' करने (अनुच्छेद 9.3) यानी पैसे जुटाने में अग्रणी भूमिका निभानी भी है.
नवंबर 2024 में अजरबाइजान के बाकू में हुए जलवायु सम्मेलन में विकसित देश 2035 से हर साल 300 अरब डॉलर जुटाने के लिए राजी हुए थे. हालांकि धन जुटाने के अलावा वो खुद कितने पैसे देंगे, इस पर उन्होंने कोई प्रतिबद्धता जाहिर नहीं की थी.
विकासशील देशों का कहना है कि पैसे 'देना' और 'जुटाना' दोनों पेरिस समझौते का हिस्सा हैं लेकिन विकसित देश सिर्फ जुटाने पर ध्यान दे रहे हैं और देने से कतरा रहे हैं. बाकू में भी ऐसा ही हुआ था और विकासशील देशों ने इस पर अपना असंतोष स्पष्ट रूप से व्यक्त किया था.
भारत ने तो 300 अरब डॉलर को बेहद कम बताया था और यहां तक कहा था कि अगर पर्याप्त मात्रा में क्लाइमेट फाइनैंस नहीं दिया गया तो उसे भी मजबूरन जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में भविष्य के अपने प्रयासों को घटाना पड़ेगा.
हालांकि बॉन में विकासशील देश मिल कर क्लाइमेट फाइनैंस को एक बार फिर टेबल पर लाने में सफल रहे. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इनमें जी77+चीन, लाइक-माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज (एलएमडीसी), अलायन्स ऑफ स्माल आइलैंड स्टेट्स (एओएसआईएस), लीस्ट डेवलप्ड कंट्रीज (एलडीसी) और अफ्रीकन ग्रुप ऑफ निगोशियेटर्स (एजीएन) जैसे समूह शामिल थे.
भारत का नेतृत्व
इन समूहों ने मिलकर वित्तीय संसाधन देने के विकसित देशों के दायित्व पर चर्चा करने के लिए एक विशेष एजेंडा आइटम शामिल करने की मांग की. खबरों के मुताबिक भारत ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई और विकासशील देशों को एक साथ लाने का काम किया.
दोनों गुटों में इस पर ऐसी असहमति थी कि सत्र शुरू होने से पहले हो रही बातचीत दो दिनों तक स्थगित रही. लेकिन अंत में विकसित देशों को मानना ही पड़ा और सत्र में औपचारिक रूप से इस विषय पर चर्चा हुई.
सोमवार 23 जून को हुई इस चर्चा में एक के बाद एक विकासशील देशों ने विकसित देशों द्वारा उनकी वित्तीय प्रतिबद्धता पर खरा उतरने में असफलता पर जोर दिया. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, भारत ने कहा कि इससे "भरोसा टूट रहा है."
यह औपचारिक चर्चा गुरुवार 26 जून तक चलेगी, जिसके अंत में एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी. वह रिपोर्ट सीओपी-30 में पेश की जाएगी और इस चर्चा को आगे बढ़ाया जाएगा.
विकासशील देशों को उम्मीद है कि जलवायु सम्मेलन में इस विषय पर चर्चा के लिए एक अलग प्रक्रिया को शुरू किया जा सकेगा. यह प्रक्रिया धीमी जरूर है लेकिन विकासशील देश कम से कम इसे फिर से एजेंडा पर लाने में सफल रहे हैं.