Krishnapingla Sankashti Chaturthi 2025: चार शुभ योगों में करें आषाढ़ संकष्टी चतुर्थी पूजा! दूर होंगे सारे ग्रह-दोष! जाने पूजा-विधि और व्रत कथा
Krishnapingla Sankashti Chaturthi (Photo: File Image)

Krishnapingla Sankashti Chaturthi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती है. बता दें कि साल में कुल 24 चतुर्थियां पड़ती हैं, 12 कृष्ण पक्ष में, जिसे संकष्टी चतुर्थी, और 12 शुक्ल पक्ष में जो विनायक चतुर्थी के नाम से मनाई जाती है. इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा-अर्चना होती है. मान्यता है कि कृष्णपिंगला संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं गणपति जी की पूजा करने से जीवन के सारे संकट दूर होते हैं, घर-परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धी आती है. आइये जानें ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी की मूल तिथि, महत्व, मुहूर्त एवं पूजा-अनुष्ठान के नियमों के बारे में. यह भी पढ़ें: Snan Purnima 2025: कब है स्नान पूर्णिमा? जानें तिथि और पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा के स्नान-अनुष्ठान के बारे में!

आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्थी की मूल तिथि एवं पूजा मुहूर्त

आषाढ़ संकष्टी चतुर्थी प्रारंभः 03.46 AM (14 जून, 2025, शनिवार 2025)

आषाढ़ संकष्टी चतुर्थी समाप्तः 03.51 PM (15 जून, 2025, रविवार 2025)

उदया तिथि के अनुसार संकष्टी चतुर्थी का व्रत 14 जून, 2025 को रखा जायेगा.

इस दिन बन रहे हैं ये शुभ योग

चतुर्थी के दिन 3 शुभ योग

* इस दिन पाताल की भद्रा रहेगी.

* ब्रह्म योग सूर्योदय से 01.13 PM तक है

* इंद्र योग 01.13 PM से देर रात तक है.

* चतुर्थी को सर्वार्थ सिदंधी योग सूर्योदय से 12.22 AM से 05.23 AM तक रहेगा

* इस दिन शिववास का भी योग बन रहा है, जो 03.46 PM तक रहेगा. मान्यता है कि इस योग में कोई भी कार्य शुभता के साथ पूरा होता है.

आषाढ़ कृष्णपिंगला संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व!

जैसा कि संकष्टि नाम से स्पष्ट है, संकटों का नाश करनेवाली चतुर्थी, इस व्रत को करने से जातक के सारे संकट नष्ट होते हैं, जीवन में शुभता आती है, कार्यों में सफलता मिलती है, तथा गणेश जी की विशेष कृपा से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

आषाढ़ संकष्टी चतुर्थी पूजा अनुष्ठान:

ज्येष्ठ संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान गणेश का ध्यान कर संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. यह पूजा सूर्यास्त से पूर्व यानी संध्याकाल में होती है. सर्वप्रथम पूजा स्थल को साफ करें. गणेशजी पर गंगाजल का छिड़काव कर प्रतीकात्मक स्नान कराएं. धूप दीप प्रज्वलित करें. गणेश जी का आह्वान मंत्र पढ़ते हुए पूजा प्रारंभ करें.

‘ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा’

गणेश जी को रोली अक्षत का तिलक लगाएं. पुष्प हार पहनाएं. अब लाल पुष्प, दूर्वा की 11 या 21 गांठ, रोली, सिंदूर, पान, सुपारी अर्पित करें. भोग में मोदक, फल एवं मिठाई चढ़ाएं. संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का श्रवण करें. अंत में गणेश जी की आरती उतारें. चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य दें, एवं पूजा करें अगले दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत का पारण करें.

कृष्णपिंगला संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा:-

प्राचीनकाल में महाजित नामक एक अत्यंत मृदुभाषी एवं दयालु राजा थे. अपने राज्य की जनता को वह अपने परिवार के समान प्यार करते थे. इसके बावजूद, वे निःसंतान थे. एक दिन, गांव वाले अपने राज्य की समस्या का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे थे. वे लोमश नामक ऋषि के पास गए. उनकी बात सुनने के बाद ऋषि लोमश ने उनसे कहा कि वे अपने राजा से कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी को विधि-विधान से मनाने के लिए कहें. राजा महाजित ने ऋषि की बात मानी और कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी का व्रत बड़ी श्रद्धा और समर्पण के साथ किया. भगवान गणपति राजा महाजित से प्रसन्न हुए और उनकी मनोकामना पूर्ति के लिए आशीर्वाद दिया. एक दिन उनकी पत्नी सुदक्षिणा ने एक बच्चे को जन्म दिया, राजा पिता बनकर बहुत प्रसन्न हुए. वह बहुत प्रसन्न हुए. इसके बाद से ही कृष्णपिंगला चतुर्थी व्रत-पूजा की परंपरा जारी है.