भारत, पाकिस्तान के बीच कश्मीर में नदी परियोजनाओं पर क्या है विवाद
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि भारत ने वर्ल्ड बैंक से अपील की है कि वह जम्मू और कश्मीर में किशनगंगा और रतले जलपरियोजनाओं से जुड़े विवाद पर अपनी कार्रवाई रोक दे. आखिर इन परियोजनाओं को लेकर क्या विवाद है?खबरों के मुताबिक भारत ने इस संबंध में वर्ल्ड बैंक के विशेषज्ञ माइकल लीनो को चिट्ठी लिखी है. लीनो 2022 से इन विवादों पर सुनवाई कर रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक लीनो ने भारत का अनुरोध मिलने के बाद पकिस्तान से इस अनुरोध पर उसकी राय मांगी है.

बताया जा रहा है कि भारत ने यह कदम पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित करने के बाद उठाया. दोनों विवाद जम्मू और कश्मीर में दो पनबिजली परियोजनाओं से संबंधित हैं. इनमें किशनगंगा नदी पर किशनगंगा परियोजना और चेनाब नदी पर बन रही रतले परियोजना शामिल हैं.

विवाद क्या है

किशनगंगा झेलम नदी की बड़ी सहायक नदियों में से एक है. यह भारतीय कश्मीर से शुरू हो कर पाकिस्तानी कश्मीर तक जाती है. इसी नदी के पानी का इस्तेमाल कर बिजली बनाने के लिए कश्मीर घाटी के बांदीपुर के पास किशनगंगा परियोजना को बनाया गया था.

इससे किशनगंगा नदी के पानी को मोड़ कर झेलम की घाटी में पहुंचाया जाता है. इसमें 110 मेगावाट के तीन यूनिट हैं जिन्हें मार्च 2018 में शुरू किया गया था और भारत की बिजली ग्रिड से जोड़ दिया गया था.

पाकिस्तान शुरू से इस परियोजना का विरोध करता रहा है. उसका कहना है कि इससे किशनगंगा नदी के पाकिस्तानी कश्मीर के इलाकों तक पहुंचने वाले पानी पर असर पड़ता है. पाकिस्तान के दृष्टिकोण से इस परियोजना में एक और समस्या है.

सिंधु जल संधि के तहत झेलम और उसकी सहायक नदियों के पानी पर पाकिस्तान का अधिकार है. हालांकि, संधि भारत को इन नदियों की बिजली परियोजनाओं जैसे इस्तेमाल का अधिकार भी देती है.

पाकिस्तान ने इस बात से इनकार करते हुए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत (आईसीए) में शिकायत की थी. आईसीए ने 2013 में अपने फैसले में परियोजना बनाने के भारत के अधिकार को सही ठहराया था. हालांकि भारत को बांध के स्पिलवे की ऊंचाई को कम करने के लिए कहा था, ताकि पाकिस्तान जाने वाले पानी पर असर ना पड़े.

पहलगाम हमले का असर

रतले परियोजना चेनाब नदी पर जम्मू-कश्मीर के किश्तवार जिले में बनाई जा रही है. इसमें 850 मेगावाट के दो पावर स्टेशन बनाए जाने हैं. पाकिस्तान का आरोप है कि यह परियोजना भी सिंधु जल संधि के प्रावधानों का उल्लंघन करती है.

पाकिस्तान ने दोनों परियोजनाओं का विरोध करते हुए 2015 में संधि के तहत एक न्यूट्रल विशेषज्ञ (एनई) की नियुक्ति की मांग की थी. लेकिन वह बाद में इन विवादों को एक और अंतरराष्ट्रीय संस्था स्थाई मध्यस्थता अदालत (पीसीए) के पास ले गया.

भारत का कहना है कि सिंधु संधि के तहत एनई की प्रक्रिया पीसीए के ऊपर है. इसलिए भारत ने पीसीए की कार्रवाई को नजरअंदाज करते हुए एनई की कार्रवाई में शामिल होना जारी रखा. माइकल लीनो वही एनई हैं जो 2022 से इन दोनों विवादों पर सुनवाई कर रहे हैं.

इसी साल 17 से 22 नवंबर तक लीनो और दोनों पक्षों की चौथी बैठक होनी थी. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस बैठक में भारत और पाकिस्तान लिखित में अपनी अपनी बात कहते, लीनो के सवालों का जवाब देते और अगर जरूरत होती तो भारत आ कर साइट पर निरिक्षण करने की तैयारी शुरू कर दी जाती.

हालांकि पहलगाम हमले के बाद सारी तस्वीर बदल गई. हमले के बाद 23 अप्रैल को भारत ने सिंधु जल संधि को ही स्थगित करने की घोषणा कर दी और कहा कि वह "संधि को तब तक स्थगित रखेगा जब तक पाकिस्तान विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमापार से होने वाले आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं कर देगा."

भारत ने इस फैसले के बारे में लीनो को भी बताया और उनसे अनुरोध किया कि वो दोनों परियोजनाओं से संबंधित अपनी सहमति से तय किए गए "वर्क प्रोग्राम" से हट जाएं. पाकिस्तान ने भारत के इस फैसले का विरोध किया और कहा कि विवाद सुलझाने की कार्यवाही को स्थगित नहीं किया जाना चाहिए. खबरों के मुताबिक पाकिस्तान ने सीधे भारत से भी कहा है कि वह भारत की चिंताओं पर चर्चा करने को तैयार है, लेकिन भारत ने अभी तक जवाब नहीं दिया है.