
What is a Radiation Leak? आपने कभी न कभी "रेडिएशन लीक" या "परमाणु रिसाव" जैसे शब्द सुने होंगे, खासकर जब चेरनोबिल या फुकुशिमा जैसी बड़ी घटनाओं का ज़िक्र होता है. ये शब्द सुनने में ही डरावने लगते हैं, लेकिन इसका असल में मतलब क्या होता है और अगर ऐसा हो तो हमारे-आपके जीवन पर इसका क्या असर पड़ सकता है? आइए, इसे बिल्कुल आसान भाषा में समझते हैं.
रेडिएशन क्या होता है?
सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि रेडिएशन आखिर है क्या. रेडिएशन एक तरह की ऊर्जा है जो तरंगों या कणों के रूप में चलती है. यह हमारे चारों ओर मौजूद है। सूरज की रोशनी, मोबाइल फोन के सिग्नल और एक्स-रे, ये सभी रेडिएशन के ही रूप हैं. ज़्यादातर रेडिएशन हमारे लिए खतरनाक नहीं होते.
खतरा तब पैदा होता है जब हम "आयोनाइज़िंग रेडिएशन" (ionizing radiation) की बात करते हैं. यह बहुत शक्तिशाली ऊर्जा होती है जो परमाणु ऊर्जा संयंत्रों (Nuclear Power Plants) या परमाणु बमों से निकलती है. यह ऊर्जा हमारे शरीर की कोशिकाओं (Cells) और डीएनए (DNA) को नुकसान पहुंचा सकती है.
रेडिएशन लीक होने का मतलब क्या है?
रेडिएशन लीक का सीधा सा मतलब है कि जहां पर रेडियोएक्टिव पदार्थ (जैसे यूरेनियम) सुरक्षित रखे गए हैं, वहां से उनका अनियंत्रित रूप से बाहर निकलकर हवा, पानी या मिट्टी में मिल जाना. ऐसा अक्सर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में किसी दुर्घटना, तकनीकी खराबी या प्राकृतिक आपदा के कारण होता है.
जब ये रेडियोएक्टिव पदार्थ पर्यावरण में फैल जाते हैं, तो वे एक अदृश्य ज़हर की तरह काम करते हैं, जिसे हम न तो देख सकते हैं, न सूंघ सकते हैं और न ही महसूस कर सकते हैं.
रेडिएशन लीक होने से क्या होता है?
रेडिएशन लीक का असर इंसानों और पर्यावरण, दोनों पर बहुत गंभीर और लंबे समय तक रहने वाला होता है.
इंसानों पर असर:
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तुरंत होने वाला असर: अगर कोई व्यक्ति बहुत ज़्यादा मात्रा में रेडिएशन के संपर्क में आ जाए, तो उसे "एक्यूट रेडिएशन सिंड्रोम" या "रेडिएशन की बीमारी" हो सकती है. इसके लक्षण कुछ घंटों या दिनों में दिखने लगते हैं, जैसे:
- जी मिचलाना और उल्टी होना
- सिरदर्द और चक्कर आना
- कमज़ोरी और थकान
- त्वचा का जल जाना
- बालों का झड़ना
- अंदरूनी अंगों से खून बहना
बहुत ज़्यादा रेडिएशन के संपर्क में आने से कुछ ही हफ्तों या महीनों में मौत भी हो सकती है.
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लंबे समय में होने वाला असर: रेडिएशन की कम मात्रा भी अगर लंबे समय तक शरीर में जाती रहे, तो यह बहुत खतरनाक साबित हो सकती है. इसका सबसे बड़ा खतरा कैंसर का होता है, खासकर थायरॉइड कैंसर, ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया) और हड्डियों का कैंसर. इसके अलावा, यह आने वाली पीढ़ियों में भी गंभीर बीमारियां पैदा कर सकता है.
पर्यावरण पर असर:
- हवा, पानी और मिट्टी का प्रदूषण: रेडियोएक्टिव कण हवा के ज़रिए हज़ारों किलोमीटर दूर तक फैल सकते हैं. बारिश के साथ ये कण ज़मीन पर आकर मिट्टी और पानी के स्रोतों को ज़हरीला बना देते हैं.
- पेड़-पौधों और जानवरों पर प्रभाव: ये ज़हरीले पदार्थ खाद्य श्रृंखला (food chain) का हिस्सा बन जाते हैं. जब जानवर दूषित घास या पानी का सेवन करते हैं, तो रेडिएशन उनके शरीर में चला जाता है. इसी तरह, यह सब्ज़ियों और फसलों में भी समा जाता है. ऐसे दूषित भोजन को खाने से यह इंसानों के शरीर में भी पहुंच जाता है.
- इलाकों का खाली होना: जिस जगह पर रेडिएशन लीक होता है, वह इलाका दशकों, सदियों के लिए इंसानों के रहने लायक नहीं रहता. चेरनोबिल और फुकुशिमा के आसपास के बड़े इलाके आज भी खाली पड़े हैं और वहाँ जाना प्रतिबंधित है.
इतिहास की बड़ी घटनाएं
चेरनोबिल (1986, यूक्रेन): यह इतिहास की सबसे भयानक परमाणु दुर्घटना मानी जाती है। एक परमाणु रिएक्टर में विस्फोट होने से बड़ी मात्रा में रेडियोएक्टिव पदार्थ वायुमंडल में फैल गए, जिसका असर यूरोप के बड़े हिस्से पर पड़ा. इस हादसे में तुरंत कई लोगों की मौत हो गई और बाद में हज़ारों लोग कैंसर जैसी बीमारियों का शिकार हुए.
फुकुशिमा (2011, जापान): एक शक्तिशाली भूकंप और सुनामी के कारण फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र के कूलिंग सिस्टम ने काम करना बंद कर दिया, जिससे तीन रिएक्टरों में रेडिएशन लीक हो गया. इसके कारण लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा और समुद्र में भी रेडियोएक्टिव पानी का रिसाव हुआ.
संक्षेप में, रेडिएशन लीक एक अदृश्य और गंभीर खतरा है जिसका प्रभाव पीढ़ियों तक बना रह सकता है. यही कारण है कि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में सुरक्षा को लेकर बेहद कड़े नियम बनाए जाते हैं, ताकि ऐसी दुर्घटनाओं को होने से रोका जा सके.